Sunday, 23 September 2012

कोई इवेंट दिल को बहलाता नहीं

कोई इवेंट दिल को बहलाता नहीं.
छुट्टीके दिनमें भी करार आता नहीं.

मैं कोई Functional नहीं ABAPer हूँ,
कैसे कह दूँ, Load से घबराता नहीं.

सेल्फ इनपुट पोर्टलोंको तोड़ दो,
अप्रेइसल में कुछ नजर आता नहीं.

मीटिंग्स, ट्रेकर्स, दुनिया भरके कॉल है,
इनके बिना अब दिन गुजर जता नहीं.

ट्यूब लाईटका उजाला चारों ओर,
सन लाईट दिन में भी नजर आता नहीं.

सुबह हुई, ऑफिस में ही रात हुई,
घरका ठिकाना याद क्या आता नहीं?

कोई इवेंट दिल को बहलाता नहीं.
छुट्टीके दिनमें भी करार आता नहीं.

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