Saturday 4 August 2012

सरहद


पुकारती है जिंदगी सरहदों के पार,

बुला रही है, जिंदगी  सरहदों के पार.

  

मेरा बचपन मेरी जवानी, मेरी कितनी यादें.

मेरी आधी जिंदगी है सरहदों के पार .

 

जिसके साएमें छुपताथा, खेलता सोता था,
वो बूढ़ा बरगद आज खड़ा है, सरहदों के पार.


 

एक दरयाके दो हिस्से, किये इस बटवारेने,
आधा दरया बह गया है, सरहदोंके पार.


ईश्वर और अल्लाहका भी हो चूका बटवारा,
मेरा इश्वर यहाँ है, अल्लाह सरहदों के पार.

 

'नाज़' से कहता रहा हूँ, खुदको मैं हिन्दोस्तानी,
आधा हिन्दोस्ताँ पड़ा है, सरहदों के पार.


21/08/1997
बिलिमोरा
INIDA TODAY special issue on 50th Independance Day - stories of families of Punjab

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