Sunday 13 October 2019

वजूद

लिखता हूँ, पढ़ता हूँ, मिटाता हूँ,
अपने हाथोंसे अपनी तक़दीर बनाता हूँ ।

कोई सुने न सुने, क्या ग़म है,
बात दिल की मै ख़ुदको सुनाता हूँ ।

ग़म कितने भी हों जिंदगी में मगर,
खुश रहेने का बहाना मैं बनाता हूँ ।

सुखे हुए हों या हों नये नये,
ज़ख़्म सारे हंसके उठाता हूँ ।

रात बित जाए निकलेगा अब उजाला
उम्मीदका आईना, खुदको दिखाता हूँ ।

चाहे कोशिश करो, मुझे क़ैद करनेकी
हैं पर अभी साबुत, आस्मां छूता हूँ ।

मेरे टूटने की राह मत तकना,
फिरसे कोशिश, फिरसे मैं उठता हूँ ।

मैं, मैं हूँ, मै था, मैं ही रहुंगा ,
'नाज'से ज़मानेसे कहता हूँ ।

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